श्रम - अचूक औषधि
आधुनिक युग में जबकि
विज्ञान ने मानव को बटन दबाने की देरी भर में सुख के सभी साधन उपलब्ध करा दिए हैं,
श्रम का महत्व केवल धन के सुख के लिए नहीं बल्कि स्वास्थय का सुख पाने के लिए भी
बढ़ गया है। देखने मे आ रहा है कि कड़ी मेहनत करके श्रमिक, जमीन या साधारण चारपाई
पर भी गहरी नींद सोता है जबकि
श्रम से कतराने वाला व्यक्ति नरम गद्दों पर भी
करवटें बदलता है। श्रमिक को मोटी रोटी और छाछ भी हजम हो जाती है जबकि श्रमहीन
व्यक्ति को स्वादु और तथाकथित सन्तुलित भोजन भी बदहजमी पैदा कर देता है। श्रम करने
से शरीर की कसरत हो जाती है और बीमारियाँ पास नहीं फटकती जबकि आरामतलब व्यक्ति
मोटापा तथा अन्य कई प्रकार की बीमारियों से अनायास ही ग्रसित हो जाता है अतः हम
धनिक है तो भी थोड़ा बहुत श्रम अवश्य करें, अपने बगीचे में पेड़-पौधों की सेवा,
प्रातः कालीन सैर, अपने शरीर के छोटे-छोटे कार्य स्वयं निपटाने की आदत डालें तो
आत्मनिर्भर बनेंगे, प्रसन्न रहेंगे और स्वस्थ भी रहेंगे। इस संबंध मे एक कहानी याद
आती है-
एक धनवान सेठ को रात भर
नींद नहीं आती थी। एक दिन नगर में पधारे हुए एक साधु को उसने अपनी परेशानी बताई।
साधु ने कहा, “वत्स, तुम्हारे रोग
का कारण तुम्हारा अपंग होना है”। सेठ हैरानी से बोला, महाराज मै अपंग हूँ? साधू विनम्रता से बोले, “अरे भाई, वास्तविक अपंग तो
वही होता है जो हाथ-पैर सही सलामत होने पर भी उनका इस्तेमाल नहीं करता। बताओ,
दिनभर मे तुम अपने शरीर से कितना काम लेते हो?” सेठ चुप हो गया क्योंकि वह
तो छोटे-छोटे काम के लिए भी नौकरों पर निर्भर रहता था। साधु बोले, अगर अनिद्रा से
बचना है, तो इतनी मेहनत करो कि थक कर चूर हो जाओ, अनिद्रा अपने आप दूर हो जायेगी।
सेठ ने ऐसा ही किया और गहरी व चिंतामुक्त निद्रा का आनंद लिया।
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