रण में गरज रही रे कालिका | Shahnaz Akhtar
नवरात्रि और शक्ति उपासना के अवसर पर माता कालिका का यह वीर रस से भरा भजन बेहद लोकप्रिय है। इस गीत में माता के दस हाथों में धारण किए गए शस्त्रों का वर्णन है और यह दर्शाया गया है कि किस प्रकार रणभूमि में माता कालिका असुरों का संहार कर रही हैं।
Singer – Shahnaz Akhtar
पहले कर में ध्वजा बिराजी, दूजी घरी है कटार
तीजे में त्रिशूल बिराजे, चौथे बरसा डार
वो तो हाथ पांच में धनुष धरी मैया,
बिन पूछे दन को जाए
रण में गरज रही रे कालिका
छटवे कर में खप्पर सोहे, साते घरी है गदा
आठे में है चक्र सुदर्शन, नौवे शंख बजाए
वो तो हाथ दस में धनुष धरी मैया,
बिन पूछे दन को जाए
रण में गरज रही रे कालिका
दूर-दूर सब हुए रण भीतर, कलि दई किलकार
अस्त्र-शस्त्र सब छुटन लागे, बहे खून की धार
वो तो थर-थर कापे रे असुर दल,
बिन पूछे दन को जाए
रण में गरज रही रे कालिका
हाथ जोड़कर देवता ठाड़े, बोले जय-जयकार
रूठी देवी मानत नहीं आए, पहने ना चमको हार
वो तो किस विध मना लाऊँ रे कालिका,
ज्वाला भड़क ही जाए
रण में गरज रही रे कालिका
चढ़े नादिया भोले शंकर, समर भूमि मैदान
भूत-प्रेत की सेना लेकर, भैरव है अगवान
वो तो शंकर पड़ गये रे पावड़े,
धरती कहर ते धार
रण में गरज रही रे कालिका
यह भजन न सिर्फ माता कालिका के शक्ति रूप का वर्णन करता है बल्कि हमें यह भी प्रेरित करता है कि सत्य और धर्म की विजय निश्चित है।
नवरात्रि, शक्ति जागरण या किसी भी धार्मिक आयोजन में यह गीत वातावरण को भक्तिमय और ऊर्जावान बना देता है।